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आचार्य विद्यासागर महाराज के स्वास्थ्य लाभ हेतु णमोकार मंत्र का जाप करें – मुनि भूतबलि सागर जी महाराज

आष्टा जिला सीहोर मध्य प्रदेश से राजीव गुप्ता की रिपोर्ट

आष्टा ।बिना भूमिका,भाव के कुछ समझ में नहीं आता है। संसार चक्र चल रहा है, भक्तांबर पाठ करने के दौरान ध्यान रखें कि धर्म का पालन हो। जैन आगम, सिद्धांत है।जीवन रहते सब्र रखो, सब्र का फल मीठा होता है। अर्थ में अनर्थ नहीं होता।तन,मन, वचन मिला, अच्छे तरीके से जीवन यापन करें। हमें वाणी में मिठास लाना होगी, सभी का भला करे। किसी का भला किया उसे भूल जाएं, किसी ने आपका बुरा किया उसे भी भूल जाओं,आप सुखी हो जाएंगे।मन को मलिनता से बचाएं। वस्तु और स्वरुप को समझें।हम अनेकांत को समझें।एक वस्तु में अनेक धर्म है। पहले जो भी काम होता था माता पिता से पूछकर, लेकिन आज कल विपरीत स्थिति है। गुरुवर आचार्य विद्यासागर महाराज के स्वास्थ्य लाभ हेतु णमोकार महामंत्र का जाप करें।

उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर मुनि भूतबलि सागर महाराज एवं मुनि सागर महाराज ने कहीं। प्रवचन की जानकारी देते हुए नरेंद्र गंगवाल ने बताया कि मुनि श्री भूतबलि सागर महाराज ने आगे कहा कि शरीर नाशवान है, शरीर पुतगल है। आत्मा अंदर से जागृत हो। आचार्य विद्यासागर महाराज डोंगरगढ़ में है, वहां उनके शरीर में परेशानी आ रही हैं, उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ हेतु णमोकार महामंत्र का जाप प्रत्येक व्यक्ति करें। आज के युग में महिलाएं अपने पति को बच्चों के नाम से या उनके खुद के नाम से पुकारती हैं,जबकि पति नहीं परमेश्वर है। अवस्था जैसी व्यवस्था करें।अच्छे शब्दों का उपयोग करें, शब्दों में बहुत ताकत है। अच्छे शब्दों से काफी मुलायमता आएगी।

पति की सेवा दासी बनकर करें। मुनि सागर महाराज ने कहा कभी भी गुस्सा नहीं आना चाहिए, क्षमाधारी बनें।शरीर मेरा नहीं,यह पुदगल है।शरीर मरता है, आत्मा नहीं।हित मित वचन बोलने से व्यक्ति आपका सहयोगी बन जाएगा। इसलिए हमेशा हित मित वचन बोले। हर व्यक्ति का शरीर निरोगी रहे, कर्मों का नाश हो। शांति, सद्भावना से रहे।आप खुश रहेंगे तभी खुशियां बांटोगे। जंगल में भी मंगल रहेगा, श्रीराम की तरह।महल में रहकर रावण की तरह दुखी हो सकते हैं। संसारी लोगों में तेरा- मेरा होता है। साधुवाद को आगे बढ़ाएं। हरदम पति पत्नी नहीं,समय- समय पर होते हैं। रिश्तेदार को अपेक्षा से पुकारते हैं। जितना प्रेम पत्नी से उतना प्रेम राम से हो जाए तो आप तर जाओगे। कब्र में पैर लटक रहे हैं, फिर भी संयम नहीं। कोई किसी का नहीं, किसी को दबाएं नहीं। अनेकांत कहता है सभी का अधिकार है,अति नहीं करें। समयवाद व साधुवाद से समझ में आएगी। रावण और राम ने जंगल में चातुर्मास किया है।मूल उद्देश्य शांति से रहो। समता सधारे।अशुभ से बचने के लिए गुणगान करें, गुणवान ही गुणगान करते हैं।मंदिर के साधन भगवान के अभिषेक , पूजा- अर्चना,स्वाध्याय आदि आपकी शांति के लिए है।गुणीजनों को देख ह्रदय में मेरे प्रेम उमड़ आए,यह भाव रखें। इंद्र भी भगवान, संतों के चरण में बैठने के लिए तरसते हैं। स्वयंभू स्तोत्र पाठ का अध्ययन करें।

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