रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर एमपी
आष्टा। व्यक्ति को सत्य पसंद नहीं आता है।वाणी को वाण नहीं वीणा बनाना हैं। हमेशा सत्य एवं मीठे वचन बोलिए।जो सत्य के लिए ओर हित के लिये किया जाता है ,वह सत्य है । सत्य परेशान हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं। व्यक्ति का कल्याण क्यों नहीं हो रहा है क्योंकि हम सत्य को मानते हैं, जानते भी हैं लेकिन सत्य को अनुभूति का विषय नहीं बना पा रहे हैं ।अनुभूति का विषय बन जाता है तो हमारी आस्था डगमगाती नही है। सत्य को आचरण में उतार नही पा रहे है, संसार असार है। सत्य को सत्य कहना आपको स्वीकार करना पड़ेगा ।
हम सत्य को जानते है, मानते है पर सत्य को स्वीकार नही कर पा रहे है। संसार बुरा है सब जानते हैं, लेकिन अनुभूति में नहीं लाते ।सत्य अनुभूति का विषय बन जाए तो कभी भी आस्था डगमगा नहीं सकती ।अनादिकाल से सत्य जान रहे हैं, लेकिन आचरण में नहीं ला पा रहे हैं ।सत्य भी ऐसा बोलो जो व्यक्ति को प्रिय लगे ।तुम बोलो या ना बोलो इस बात का गम नहीं ,तुम मुस्कुराकर देख लो यह भी बोलने से कम नहीं। अनंत बार संसार सुखा दिया था सम्यक दृष्टि ने,70 कोड़ी मिथ्यात्व की जो साता पड़ी थी वह एक क्षण मात्र में समाप्त कर दी।
उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज एवं मुनिश्री निष्काम सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने कहा गुरुओं की वाणी को हम अनादिकाल से सुनते आ रहे है ,पढ़ते आ रहे है, पर आज तक हमने ज्ञान को आत्मा कि पर्याय नही बनाया ।संसार सागर बहुत बड़ा है, एक बार उन गुरुओं का उपदेश अपनी आत्मा में सत्य को अपनी अनुभूति में नही लाते इस लिए हम भव -भव में जन्म ले रहे है ।यह प्रक्रिया अनादिकाल से चल रही है, यह बात का हमको स्वीकार नही हुई, इस लिए हम आज तक मोक्ष गति में नही पहुंचे। सत्य के साथ रहना नही स्वीकारा हमने। उत्तम सत्य धर्म हमें यही सिखाने आया है, अपने मार्ग को सही दिशा दे। सही दिशा में चलने पर ही अंतिम लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। जब व्यक्ति का पुण्य का उदय आता है तब सभी लोग उसका साथ देते है। अशुभ कर्म जब उदय में आते है तो घर वाले सगे सम्बन्धी भी साथ छोड़ देते है। सत्य धर्म यही सिखाता है, जहाँ सत्य होता वहां सब लोग रहते है। बहुत सारे लोग कहते है काल लब्धि आएगी जब धर्म करेंगे काल लब्धि कुछ नही कर पायेगी।
हमको स्वयं को पुरूषार्थ करना पड़ेगा। सत्य परेशान हो सकता है, पर पराजित नही होता। धर्म तुम्हारी परीक्षा लेता है ,सत्य को तुमने परेशान किया है झूठ का सहारा ले रखा है ।हमने वाणी संयम को वीणा बनाना है वाणी को बाण नही बनाना है।जीभ की लगी चोट ओर जीभ पर लगी चोट शब्द का हेरफेर है ,बस अच्छी समझ की आवश्यकता है ।जरूरी नही हम किसी से बोले, बस एक बार मुस्करा के देख लो, जब हमारी वाणी बोली अच्छी होती है तो सब काम हल कर सकते है। हम असत्य का सहारा ले रहे है।मुनिश्री निष्काम सागर जी महाराज ने कहा कि चारों कषायों के उपसम क्षयोप्सम के बाद आता है। उत्तम सत्य धर्म सत्य कहना अलग बात है और सत्य का आचरण करना अलग बात है। सत्य को हम कभी स्वीकार करते नही है, असत्य में ही जी रहे है ।सत्य को स्वीकार करना ही बहुत बड़ा सत्य है ।आचार्यो ने कहा कि हजारों वर्ष तक असत्य के साथ रहने के बाद एक पल भी सत्य को स्वीकार कर लिए तो इसे जीवन की बहुत बड़ी घटना मानो। मुनिश्री निष्काम सागर महाराज ने कहा बोलने की शैली अच्छी होना चाहिए ,हमेशा अपने पास एक निंदक को अपने पास रखो वही आपको हमेशा आपकी गलती बताएगा, कमी बताएगा और आप उस पर ध्यान देकर अमल करोंगे तो आपकी जिंदगी संवरेगी।जिस व्यक्ति पर कषाय हावी हो जाती है, वह किसी भी स्थिति में जा सकता है ।तीव्र पाप कर्म के उदय के कारण वह सही क्या गलत क्या सब कुछ भूल जाता है ।व्यक्ति सत्य को भी स्वीकार भी नही करता है ,तुम्हारे जिस शरीर मे आत्मा निवास कर रही वह भी इस पुद्गल मय शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर मे चली जाएगी ।यह एक सत्य है आपके अंदर भी उत्तम सत्य धर्म प्रवेश हो यही मंगल भावना है।