रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर एमपी
आष्टा। जिंदगी का अनुभव तो नहीं पर इतना मालूम है। छोटा आदमी बड़े मौके पर काम आ जाता है ।और बड़ा आदमी छोटी की बात पर औकात दिखा जाता है । इसलिए कभी भी छोटे और गरीब आदमी की उपेक्षा और अपमान ना करें। रहीमन देखन बडन को, लघु न दीजिए डार। जहां काम आवे सुई, क्या करे तलवार।उक्त सारगर्भित विचार सोमवंशीय सहस्त्रार्जुन क्षत्रिय समाज मंदिर सुभाष चौक पर चल रही सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस परम भागवत भास्कर संत श्री मिट्ठूपुरा सरकार द्वारा व्यक्त किए गए।
आज कथा में पूज्य महाराज श्री द्वारा राजा परीक्षित के सुशासन का वर्णन करते हुए बताया। की परीक्षित के राज्य में ना कोई दुखी था। ना कोई दरिद्र था। सारी प्रजा एक दूसरे से अत्यंत प्रेम करती थी। उनके राज्य में किसी की अल्प मृत्यु नहीं होती थी। सब और धर्म का शासन था। धर्म अनुसार सभी आचरण करते थे। और महाराज परीक्षित भी अपनी प्रजा का पुत्रवत ध्यान रखते थे। परीक्षित जी नीति अनुसार शासन करते थे। वह मानते थे। जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सो नृप अवश्य नरक अधिकारी। उन्हीं के समय में कलयुग का आगमन हुआ। महाराज परीक्षित ने कलयुग को मारने के लिए तलवार निकाली ।और उससे कहा तू मेरे राज्य में नहीं रह सकता। तब कलयुग ने परीक्षित जी के चरण पकड़ लिए। प्रार्थना की भगवान सारी दुनिया में आपका राज्य है। मैं कहां जाऊं, इसलिए मुझे कुछ स्थान दे दो, मैं वहीं पर गुजारा कर लूंगा। तब महाराज परीक्षित ने कलयुग को पांच स्थान रहने के लिए दिए।
इनमे जुआ, मदिरापान, चरित्रहीन स्त्री, हिंसा और अनीति से कमाया हुआ सोना, यह पांच स्थान कलयुग को रहने के लिए दिए। आज भी जो व्यक्ति इन पांच चीजों से बच जाता है। उसके ऊपर कलयुग का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। और वही परीक्षित महाराज एक दिन अपने पूर्वजों द्वारा जरासंध से छीना हुआ सोने का मुकुट अपने सिर पर धारण कर लिया। अनीति का होने के कारण ऐसे साधु स्वभाव महाराज परीक्षित का मन बिगड़ गया। और जिन्होंने जीवन में कभी चींटी भी नहीं मारी थी। आज शिकार खेलने के लिए जंगल में गए, वहीं पर संत श्रमिक जी के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया। इसी से क्रोधित होकर संत के पुत्र श्रृंगी जी ने श्राप दे दिया। की जिसने भी मेरे पिता के गले में सर्प डाला है आज से सातवें दिन तक्षक सर्प के काटने से उसकी मृत्यु होगी। राजा परीक्षित घर आए सर से मुकुट हटाया, वैसे ही उनकी बुद्धि शुद्ध हो गई। बड़ा दुख हुआ ।मैंने एक संत का अपराध कर दिया। इतने में संत के शिष्य गोरमुख के द्वारा समाचार मिला, की राजन आज से सातवें दिन तुम्हारी मृत्यु होनी है ।इसलिए तुम ऐसा कोई उपाय कर लो जिससे तुम्हारी मृत्यु सुधर जाए। इतना सुनते ही राज, पाठ, पत्नी पुत्र परिवार का त्याग कर सुकताल मे गंगा नदी के किनारे बैठकर सुखदेव जी से श्रीमद् भागवत कथा श्रवण की, और इसी श्रीमद् भागवत की सात दिवसीय कथा सुनकर परीक्षित जी को मोक्ष प्राप्त हुआ।
इस भावपूर्ण और बहुत ही मार्मिक कथा को श्रवण कर सारे श्रोता भाव विभोर हो गए, कई श्रोताओं के आंखों से आंसू की धारा बहने लगी ।इसके अलावा कलयुग के अनेक भक्तों के जीवन चरित्र वर्णन किया। इस अवसर पर भुरू जी मुकाती ,जगदीश खत्री मनीष डोंगरे, सुभाष नामदेव, चंदर सिंह ठाकुर गवाखेड़ा, राजेंद्र सिंह ठाकुर खामखेड़ा, बहादुर सिंह ठाकुर ,दिनेश जी पिपलोदिया, रमेश जी चौरसिया।
दिनेश वर्मा ,अनिल जी श्रीवास्तव राजेंद्र नामदेव ,राकेश कुशवाहा मनोहर सिंह पटेल, दिनेश डोंगरे अशोक डोंगरे ,सज्जन सिंह महतवाड़ा , गजेंद सिंह ठाकुर (रूपाहेड़ा) मनीष मेवाडा आदि बड़ी संख्या में माता बहनों ने श्राद्ध पक्ष के पावन अवसर पर पितरों को शांति और मुक्ति देने वाली श्रीमद् भागवत कथा का रसपान किया।