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वृक्ष कभी इस बात पर दुखी नहीं होता है। कि उसने कितने फूल खो दिए, वह तो सदैव नवीन पुष्पों के सृजन में व्यस्त रहता है। जीवन में कितना खो गया *मिठ्ठुपुरा सरकार

रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर एमपी

आष्टा। वृक्ष कभी इस बात पर दुखी नहीं होता है। कि उसने कितने फूल खो दिए, वह तो सदैव नवीन पुष्पों के सृजन में व्यस्त रहता है। जीवन में कितना खो गया । इस दर्द को भूलकर नया क्या कर सकते हैं। बस इसी में लगा रहता है। और जीवन की सार्थकता भी इसी में है। बीती ताहि बिसार दे, अब आगे की सुधी लेही। उक्त बहुत ही अनुकरणीय सद् विचार पिपलोदिया परिवार द्वारा आयोजित सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस व्यास आसन पर विराजमान परम भागवत भूषण संत श्री मिट्ठू पुरा सरकार द्वारा व्यक्त किए गए। आगे महाराज श्री द्वारा बताया कि यह संसार दुखालय हैं।

दुखों का घर है, इसलिए जीवन में दुख तो आते ही रहेंगे, पर उनसे घबराना नहीं है। भगवान श्री कृष्ण के जीवन में कितने कष्ट आए पर भगवान कभी घबराए नहीं, हमेशा मुस्कुराते हुए चैन की बंसी बजाते रहे। हर फोटो में आपको भगवान कृष्ण हमेशा मुस्कुराते हुए दिखते हैं। दुख से मत घबराना पंछी, यह जग दुख का मेला है। माना भीड़ बहुत अंबर में, उड़ना तुझे अकेला है। आगे श्री कृष्ण जन्मोत्सव की कथा सुनाते हुए संत श्री ने बताया कि ,भगवान श्री कृष्ण के जन्म से पूर्व ही उनके सगे 6 भाइयों को कंस ने मार डाला। मात्र 6 दिन की उम्र में ही पूतना राक्षसी श्रीकृष्ण को मारने के लिए आई। कंस ने अनेक राक्षसों को बाल रूप श्री कृष्ण को मारने के लिए भेजा।

बाल्यावस्था में ही उनसे लड़ना पड़ा। इसके बाद मगध के राजा जरासंध से 18 बार युद्ध हुआ। रुक्मणी जी से विवाह के समय शिशुपाल और रुक्मी से लड़ना पड़ा। सार यह है, कि, भगवान के जीवन में भी दुख ही दुख रहे। इससे पहले महाराज श्री द्वारा भागवत की विभिन्न कथाओं का जिसमें जड़ भरत, गज और ग्राहा, समुद्र मंथन, अजामिल चरित्र, बराह अवतार, ध्रुव चरित्र, भगवान कपिल और देवहूति जी का प्रसंग, भक्त शिरोमणि प्रहलाद जी की कथा के साथ ही भगवान श्री राम जन्म की कथाओं का संक्षिप्त वर्णन किया। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव की कथा को बड़े ही भावपूर्ण ढंग से श्रवण करया।

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शुक्ल पक्षभादो मास अष्टमी तिथि बुधवार रात्रि 12 बजे मथुरा में कंस के जेल खाने में वासुदेव देवकी जी के यहां भगवान श्री कृष्ण ने अवतार लीया। भगवान श्री कृष्ण के जन्म होते ही , कंस के पहरेदार सो गए। जेल के दरवाजे अपने आप खुल गए। माता-पिता के हाथ की हथकड़ी बेड़िया खुल गई। जिनके जीवन में भगवान आते हैं, उनके बंधन अपने आप खुल जाते हैं। भगवान के जन्म के अवसर पर आलकी की पालकी, जय कन्हैया लाल की, नंद घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की, के गगन भेदी नारों से सारा मंदिर प्रांगण गूंजायमान हो गया। मधुर भजन गाए गए। मीठे मीठेभजनों पर भाव विभोर होकर मंदिरजी मे विराजमान सभी श्रोताओं में झूम झूम का नृत्य किया। एक दूसरे को जन्म की बधाई दी। फूलों की होली खेली गई। नामदेव समाज द्वारा पूज्य महाराज श्री का शाल श्रीफल भेंटकर स्वागत किया गया। इस अवसर पर कैलाश परमार, राजीव गुप्ता परकार,नरेंद्र कुशवाहा सुभाष नामदेव ,सुनील प्रगति ,राजेंद्र नामदेव, शंकर मंदिर के पंडित हेमंत राज गिरी, राजेश्वरानंद पंडित , सुनील रुद्र, ओम ठाकुर, हरदेव मेवाड़ा, जेपी सोनी, अनिल जी श्रीवास्तव ,अमन राठौर, लोकेंद्र पिपलोदिया, रमेश चंद्र शर्मा, सुरेश डोंगरे,बहादुर सिंह ठाकुर, गजेंद्र सिंह ठाकुर(रूपाखेड़ा डोडी) दिनेश पिपलोदिया रमेश डोंगरे सहित बड़ी संख्या में भक्तगण पधारे और कथा का रसपान किया।

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