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एक शब्द वाण का काम करते हैं और एक शब्द मलहम का काम करते हैं,जिंदगी की राहों में अक्सर ऐसा होता है फैसला जो मुश्किल होता है वहीं बेहतर होता है — मुनिश्री निष्पक्ष सागर जी महाराज

रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर एमपी

आष्टा।राजा दशरथ ने सत्य वचन को निभाया,राम ने सत्य वचन का पालन किया और विभीषण ने सत्य का साथ दिया। रावण ने सत्य का पालन नहीं किया।किस का क्या हुआ इतिहास गवाह है।हम सब की यात्रा सत्य की ओर होना चाहिये।बुरी आदतें वक्त रहते न बदली जाए तो बुरी आदतें आपका वक्त बदल देगी‌। भाग्यशाली अवसर का मिल जाना विपरीतता में भी अवसर को ढूंढना भी एक लक्ष्य को ढूंढना है। अपने अंतिम लक्ष्य को पहचाने की मुझे क्या करना है ।यह जिंदगी अभावों से भरी हुई है, फिर भी हम उसी में उलझे हुए है। सारी कमियों को दूर करने का प्रयास करें ।हर व्यक्ति कहता है बहुत कुछ है मेरे पास पर सब कुछ नही ।संसार की दौड़ में अभावों का नाम ही संसार है। रिक्तता ही संसार की रीत है ।

दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी ,तुम्हारे जीवन मे अभाव ही अभाव है तो अपने आपको अभाव से बचाओ ओर हमें हमेशा सत्य का साथ देना चाहिए। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। आपने कहा अवसर की पहचान अब हमें आना चाहिए । संसार में रिक्तता है। अभावों का नाम ही संसार है।हर प्राणी के जीवन में कुछ न कुछ अभाव है। कोई भी पूर्णतया नहीं है। दूसरे को नहीं स्वयं को देखें।आज व्यक्ति स्वयं के दुःख से दुःखी नहीं बल्कि पड़ोसी के सुख से अधिक दुखी हैं।

मृत्यु एक सत्य है फिर इससे डरते क्यों हैं।मुनिश्री ने कहा तृष्णा वृद्धों में आज भी युवाओं की तरह जागृत है।आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज कहते हैं कि तृष्णा को घटाएं।पूरा जीवन दौड़ और होड़ में व्यतीत हो रहा है।आज भी मैं में में में लगे हो।काया और माया छूटने वाली है।आठ कर्म रूपी बेड़ी आपको जकड़े हुए हैं।मूक माटी में आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज ने पागल की परिभाषा लिखी है ।पागल अर्थात जो पापो को गलाने में लगे रहे वह पागल है ।साधु- संतों ने तो पापों को गलाने के लिए त्याग तपस्या का मार्ग चुना और आप लोग पापों को बढ़ाने में लगे हुए हैं। व्यक्ति अकेला आया था और अकेला ही उसे जाना है।वह संसार में अटका और भटका हुआ है। जिनको अपना मानते हैं वह ही आपका साथ छोड़ते हैं।गुरु देव कहते थे कि बोलों तो हित मित प्रिय वचन बोले, अन्यथा मौन रहे।आपके वचन आपके आदर्श है । महापुरुष महापुरुष होते हैं। ज्ञान- ध्यान में लीन रहो। आत्मा की आराधना करों। कर्ण प्रिय बोले,घातक नहीं बोलें। थोड़ा मायाचारी से ऊपर उठकर पुरुषार्थ करें।संत ने डाकू से कहा मैं तो पापों को रोक चूका हूं तुम कब रुकोगे।डाकू ने कहा मेरा काम लूटना, मारना, पीटना है। संत बोले अपने परिवार के लिए लूट पाट, चोरी, हत्या आदि करते हो। इन पापों को तुम्हें अकेले ही भोगना है। बाहर की होड़ और दौड़ कभी भी समाप्त नहीं हो सकती है। खंडित हो गया महल फिर भी मरम्मत करते हैं।बाल सफेद हो गए हैं उन्हें आप काले कर रहे हैं।

आचार्य भगवंत ने मूकमाटी में लिखा है पाप से घृणा करों पापी से नहीं।जो कल तक हैरान और परेशान था वह सदा संगति अच्छी रखें।हम साधक व संत नहीं बने तो कम से कम अच्छे व्यक्ति तो बने।विपरितता में अवसर नहीं छोड़े। जब तुम दुसरो को देखते है तो दुखी होते है जब तुम स्वयं को देखते हो तो असलियत पता चलती है हम कहा है ।स्वामित्व ,बुद्धि, कृतित्व बुद्धि अनादि काल से चल रही है ।पूरा जीवन दौड़ ओर होड़ में निकल रहा है ।आज का मानव स्वामित्व बुद्धि में मेरी पत्नी ,मेरा बेटा ,मेरा मकान इसी में उलझा हुआ है ।आज का मानव मूल स्वभाव से दूर होता जा रहा है ।आत्मा तो अनादि है क्या माया ,सब छूटने वाली है ।आत्मा अनादि काल से संस्कारों में डूबी हुई है।विपरीतता में अवसर को ढूंढ लेना विरले लोगो की बात है।पशु- पक्षी भी अपना पेट भर लेते है ।यथार्ताता की ओर आओ भूलो नही।कर्मो में गाफिल होकर अपना अमूल्य समय व्यर्थ मत गंवाओ ।स्वामित्व बुद्धि से ऊपर उठो ,जिनको अपना माना उनसे ही दुख पाया है लोगों ने।

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