रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर एमपी
आज व्यक्ति जोरु के गुलाम बन जातें हैं लेकिन गुरु के गुलाम नहीं बनते। –मधुबाला जी महाराज साहब

आष्टा।भगवान महावीर स्वामी का शासन जयवंत है। महावीर के गुणों को जिन्होंने अपने जीवन में उतार लिया वह तर गए। गुरु मानना आसान है, लेकिन गुरु की बातों व शिक्षा को नहीं मानते हैं।आज व्यक्ति जोरु के गुलाम बन जातें हैं, लेकिन गुरु के गुलाम नहीं बनते। गुरु के गुलाम अर्थात उनकी बातों को मानने वालों का जीवन संवर जाएगा। शास्वत भक्तों के भगवान थे। गुरु आज्ञा से चलना चाहिए। गुणों को जीवन में उतारने से जीवन महान बनता है। उक्त बातें नगर के महावीर भवन स्थानक में विराजित पूज्य मधुबाला जी महाराज साहब ने आशीष वचन देते हुए कहीं।आपने कहा कि मन को चंगा रखें, जिनवाणी रुपी गंगा में स्नान करने से अर्थात जिनवाणी श्रवण करने से जीवन सार्थक होगा।किसी के प्रति भी मलिन भाव नहीं रखें।

पूज्य मधुबाला जी ने कहा भक्ति से भगवान भी प्रकट हो जाते हैं।संत रेदास का वृतांत सुनाया।मन चंगा तो कठोती में गंगा। तीन दिवसीय धर्म आराधना की गई।महापुरुषों के गुणगान गाने से मन की मलिनता दूर होती है। पूज्य मल्याश्री जी ने कहा भगवान की अंतिम देशना पर अमल करें। पूज्य मल्याश्री जी ने कहा कर्मों के क्षय हुए बिना जन्म मरण से मुक्ति नहीं।जीव अशुभ कर्मो का बंध कर रहा है, इसलिए जन्म मरण से मुक्ति नहीं मिल रही है। कर्मों का क्षय कर पुण्य अर्जन करना चाहिए।जीव को आज धर्म कठिन लगता है, मनुष्य भव से ही मोक्ष की प्राप्ति। धर्म बुढ़ापे में नहीं युवा अवस्था में करना चाहिए। वैज्ञानिकों ने साधन बना दिए जिससे कर्म बंध हो रहा है। साधनों के कारण धर्म छूट रहा है। मोबाइल आपको धर्म लाभ नहीं लेने दे रहा है। महाराज साहब गौचरी के लिए आए और हाथ में मोबाइल था तो आप गौचरी देने से वंचित रह गए। पहले बड़ों की सुनते थे ,उनके नित्य चरण स्पर्श करते थे। विनय मोक्ष का द्वार है। संस्कार कहा जा रहें हैं।आज उठते से सबसे पहले मोबाइल उठाकर व्हाटशाप खोलते हैं, भगवान का स्मरण नहीं करते। साधनों के कारण सहनशीलता विलुप्त होती जा रही है।ये साधन ही टेंशन का कारण बन गया है।आज आपके जीवन में मोबाइल आवश्यक साधन बन गया है, पहले के लोग इन नये साधन के नहीं होने पर भी सुखी थे।भगवान महावीर स्वामी का शासन और जैन कुल मिला फिर भी धर्म के मार्ग पर नहीं चल रहे हो। बिना साधन के जीवन जीने का प्रयास करें। अंजना को भी दुःख आया था। उसे बचपन से ही संस्कार दिए गए थे, धर्म की शिक्षा दी गई। पहले संस्कार और परिवार देखते थे और आज संसारी वैभव एवं धन संपदा देखते हैं।कर्म उदय में आते हैं। कर्मों से मुक्त होने का काम करें।पूज्य सुनीता श्रीजी महाराज साहब ने कहा कोई भी ऐसा समय नहीं रहता की जीव का जन्म और अवसान नहीं होता है। उपकारी का उपकार कभी नहीं भूले। आचार्य आनंद ऋषि महाराज का 111 वां दीक्षा दिवस याद है,हम उनके बताए मार्ग पर चलने का प्रयास करें। उनकी मां धन्य है उन्होंने अपने बालक को दीक्षा दिलाई।आयु-जीवन का कोई भरोसा नहीं।27 वर्ष की युवा अवस्था में दो नियम लिए।

अपने गुरु व पिता के अवसान पर। आयंबिल की तपस्या की लकड़ी के बुरादे को पानी में घोलकर पीते थे और आयंबिल की तपस्या करते थे। उन्होंने अपनी बुद्धि का सदुपयोग किया।17 भाषाओं का ज्ञान।84 वर्ष की आयु में अरबी भाषा का ज्ञान लिया। विकट साधना महापुरुष कर गए,हम भी उनकी साधना, तपस्या पर अमल करें। जिसकी पुण्य वाणी होती है उसे ही अच्छा पद मिलता है। आचार्य प्रवर्तक थे उमेश मुनि को युवा चार्य पद देना चाहा, लेकिन उन्होंने युवा चार्य पद नहीं लिया। महापुरुषों की जीवन गाथा हमें संदेश देती है। श्रमण संघ में आज भी ऐसे संत हैं।
सत्य का डंका आज भी बजता है। श्रमण संघ ही नहीं जीन शासन गौरव है। अच्छे व्यक्ति के प्रति अच्छे भाव रखें।महापुरुषों में गुणों के प्रति अनुराग था, ऐसे अनुराग आप हम में भी आएं। आचार्य आनंद ऋषि जी की 111 वीं दीक्षा जयंती पर तीन दिवसीय धार्मिक तपस्या एवं णमोकार महामंत्र का जाप किया गया।

