जगह जगह पग प्रक्षालन किया
बहुत पुण्य से ऐसे जिनालय के दर्शन होते हैं — मुनि निर्णय सागर महाराज
रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर एमपी

आष्टा। आष्टा नगर का नाम बहुत सुना था।अजीत सागर महाराज हमारे साथ दीक्षित महाराज की जन्म स्थली पर आकर एवं बड़े बाबा के दर्शन कर बिहार की सारी थकान दूर हो गई।

जिनेंद्र भगवान के दर्शन एवं तीर्थ पर स्नान करने से, भगवान के चरणों में डूबकी लगाने से सारे पाप धूल जाते हैं।इन दिनों प्रयागराज कुंभ चल रहा है,वहां करोड़ों लोगों द्वारा नदी में डुबकी लगाई गई।दो आंखें मिलीं है, उनका उपयोग भगवान के दर्शन करने में करें। यहां हजारों वर्ष तक जैन धर्म रहेगा, यहां समाज के में काफी उत्साह है। आष्टा नहीं अतिशय क्षेत्र में आ गए। बहुत पुण्य से ऐसे जिनालय के दर्शन होते हैं। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर पधारे संत शिरोमणि आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य श्रमण श्री निर्णय सागर जी महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं।

मुनिश्री ने कहा आप सभी में हमेशा देव, शास्त्र और गुरु के प्रति आस्था बनी रहे। मुनिश्री निर्णय सागर महाराज ने कहा आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज भले ही आष्टा नहीं आएं ,लेकिन उनका यहां पर अपार आशीर्वाद रहा और नवाचार्य समय सागर महाराज का भी आशिर्वाद है, इसीलिए उन्होंने आचार्य पद पर आसीन होते ही आपको चार मुनि महाराज का चातुर्मास दिया। आपने कहा मेरी नजर में प्रदेश में दो राजधानी है।एक इंदौर व्यापारिक राजधानी है। दूसरी प्रदेश की राजधानी भोपाल है। नेमि नगर के नेमिनाथ मंदिर भी पहुंचेसंत शिरोमणि आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य श्रमण श्री निर्णय सागर जी महाराज ससंघ का मंगल नगर प्रवेश 18 जनवरी दिन शनिवार को भोपाल नाका से हुआ। मुनि संघ को दिव्योदय दिव्य घोष के साथ भोपाल नाका से मंगल अगवानी कर कन्नौद रोड से नेमि नगर स्थित श्रीनेमिनाथ जिनालय पहुंचे और वहां भगवान के दर्शन पश्चात नगर के प्रमुख मार्गो से होते हुए श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर पहुंचे।गैरतगंज, सागर, सीहोर के श्रावकजन विशेष रूप से उपस्थित रहे सभी का समाज की ओर से संरक्षक दिलीप सेठी, कैलाशचंद जैन,धनरुपमल जैन आदि ने सम्मान किया। मंगलाचरण शरद जैन ने किया।

