रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर एमपी
करवा चौथ का व्रत स्त्रियों के लिए फलदायक माना गया है। अपने पति की रक्षा और लंबी उम्र की कामना के लिए महिलाएं करवा चौथ का व्रत हर साल रखती हैं। यह व्रत निर्जला व्रत है, जो बेहद कठिन माना जाता है। करवा चौथ के व्रत की शुरुआत सरगी से होती है और इसका पारण चंद्र दर्शन के बाद ही किया जाता है।
मान्यता है कि द्रौपदी ने भी पांडवों को संकट से मुक्ति दिलाने के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था. करवा चौथ का व्रत विवाह के 16 या 17 सालों तक करना अनिवार्य होता है. यह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि जो स्त्री इस व्रत को करती है, उसके पति की उम्र लंबी होती है करवा चौथ की उत्पत्ति हिंदू पौराणिक कथाओं में गहराई से निहित है।
किंवदंती है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए व्रत रखा था । इस परंपरा को अर्जुन की सुरक्षा के लिए द्रौपदी की चिंता और करवा देवी की अटूट भक्ति की कहानियों के माध्यम से प्रतिध्वनित किया गया है करवा चौथ व्रत में किस भगवान की पूजा करते हैं:
करवा चौथ व्रत में भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय और भगवान गणेश की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। रात को चंद्रदर्शन और उन्हें अर्घ्य देने के बाद व्रत खोला जाता है। मान्यता है कि इस दिन विधिवत पूजा करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
🌹जय श्रीकृष्ण🌹
*यदि आपको ईश्वर से भय है तो इंसानों से भय नही रहेगा…
*आज कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी है,इस चतुर्थी को संकटा चतुर्थी,करवा चतुर्थी कहा जाता है, इस दिन पिंग नामक गजानन की सम्पूर्ण शिव परिवार के साथ पूजा,आराधना कर घी और उडद मिलाकर भगवान श्रीगणेशजी का हवन कर लाल कनेर के पुष्प को अर्पण करें। अखंड सौभाग्य एवं पति की दीर्घायु एव मंगल कामना हेतु चंद्रमा को अर्घ्य अर्पण करे निराहार व्रत रखकर अपने सौभाग्य की प्रार्थना करे,भगवान श्री गणेश जी को लड्डू का नैवेद्य अर्पण कर संकटों से निवृत्ति,शत्रुओं पर विजय प्राप्ति हेतू अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करे।*
चंद्रोदय समय:- रात्रि 8:22*
नगरपुरोहित परिवार आष्टा 9893382678
करवा चौथ का व्रत स्त्रियों के लिए फलदायक माना गया है। अपने पति की रक्षा और लंबी उम्र की कामना के लिए महिलाएं करवा चौथ का व्रत हर साल रखती हैं। यह व्रत निर्जला व्रत है, जो बेहद कठिन माना जाता है। करवा चौथ के व्रत की शुरुआत सरगी से होती है और इसका पारण चंद्र दर्शन के बाद ही किया जाता है।