रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर एमपी
माचिस की तिलियों से ही आग नहीं लगती बल्कि शब्दों से भी आग लगती है — आराधना श्रीजी

आष्टा। व्यक्ति शासन-प्रशासन एवं पुलिस को धोखा दे सकता है लेकिन अपने कर्मों को नहीं। आपका जीव 84 लाख योनियों में भटक कर आया है।आज के समय में लोग डॉक्टर और इंजीनियर की तो मानते हैं, लेकिन परमात्मा की बातों को नहीं मानते हैं। आपकी आत्मा ही सुख और दुख को आमंत्रित करती है। आग सिर्फ माचिस की तिलियों से ही नहीं शब्दों से भी लगती है। उक्त बातें श्री महावीर भवन स्थानक में विराजित राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत परम पूज्य आनंदऋषिजी महाराज साहब की सुशिष्या गुरणी मैय्या वल्लभ कुंवर जी की शिष्या उपप्रवर्तनी परम पूज्य मालव कीर्तिसुधाजी महाराज साहब ने आशीष वचन देते हुए कहीं।मालव कीर्तिसुधा जी महाराज साहब ने कहा हमारा जीवन अनन्त काल से 84 लाख योनियों में भटक रहा है। शासन- प्रशासन, पुलिस को धोखा दे सकते हैं, लेकिन कर्मों को नहीं कर्म किसी को छोड़ने वाला नहीं। सभी की देखने की दृष्टि अलग – अलग है। अपनी आत्मा ही सुख दुःख को आमंत्रित करती है।जो आत्मा जैसा करती है वैसा ही भोगना पड़ता है।न्याय और अच्छे काम से आया धन ही धर्म कार्य में अर्थात दान -पुण्य में लगता है। कोई दान करना चाहता है और आप उसमें रोड़ा अटकाते है तो आपको पाप लगेगा और उसका फल भोगना पड़ता है।

कीर्तिसुधा जी ने आगे कहा कि पाप कर्म उदय में आने पर छटी का दूध याद दिला देता है। कर्म नानी -दादी याद करा देता है। डॉक्टर की बात पर सभी को पूर्ण विश्वास, इंजीनियर की बात को मानते हैं लेकिन परमात्मा की बात को नहीं मानते।दान देकर पश्चाताप न करें।दान देते समय उत्कृष्ट भाव रखें। मुनि राज भाव व भक्ति के भूखे रहते हैं। भारतीय संस्कृति का उपयोग करें। मुनि के साथ जितने कदम चलते हैं उतने ही कर्मों की निर्जरा होती है। परमात्मा की वाणी आत्मा व जीवन में उतर जाएं तो कल्याण ही कल्याण। साध्वी आराधना श्रीजी ने कहा कि श्रद्धा पूर्वक जिनवाणी सुने तो एक भव सुधरेगा और जीवन में परिवर्तन आएगा।अभय जीव में परिवर्तन नहीं आता है।आप अपना जीवन टटोलना की आप भव्य जीव है या अभव्य जीव। धर्म शब्दों से नहीं प्रेक्टिकल जीवन से होता है।हम किसी के लिए हमदर्द बने सिरदर्द नहीं बनना। आराधना श्रीजी ने आगे कहा भीड़ने भिड़ाने का काम नहीं करें।सगा ही दगा देता है,दूसरा नहीं। अपनी ही जीभ अपने दांतों से कटती है। पहले बेटी को बिदाई के पहले हिदायत दी जाती थी, सभी का सम्मान करना, किसी से तेज नहीं बोलना,संयुक्त परिवार देखते थे और आज आपको परिवार देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती बेटी स्वयं ही चुन लेती है। माचिस की तिलियों से ही आग नहीं लगती बल्कि शब्दों से भी आग लगती है।तीली की आग को बुझाया जा सकता है,लेकिन शब्दों की आग को बुझाना टेढ़ी खीर है। साथ रहोगे तो करोड़पति रहोगे और अलग रहोगे तो रोडपति बन जाओगे।जो अपनों की पुकार नहीं सुन सकते वह अन्य की पुकार नहीं सुनते। किसी का विश्वास -भरोसा नहीं तोड़े। आत्मा के मीत से मिलना है तो भीड़ना भिड़ाना बंद करें। भटकना बंद करें, परमात्मा के अनुसार जीवन यापन करें।

